मुझको लौटा दो बचपन का सावन !!!
बचपन भी क्या खूब है !
न जीवन के झंझावातों का भय
शायद ईश्वर का यही स्वरुप है ??
शायद इश्वर का भी यही स्वरुप है ?
छोटा पर विशाल हिर्दय,
सब पर स्नेह उड़ेलने को व्याकुल .
न दोस्ती की परवाह
न दुश्मनी की समझ
बचपन भी क्या खूब है!!न जीवन के झंझावातों का भय
उन्मुक्त मन, निर्विकार, निर्भय.
उनकी एक मुस्कान,
छू कर देती है चिंता, थकान.
न कोई तोल न मोल,
क्या अनुरूप, क्या प्रतिरूप है.शायद ईश्वर का यही स्वरुप है ??
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आपके विचारों का स्वागत है.....विल्कुल उसी रूप में कहें जो आप ने सोंचा बिना किसी लाग लपेट के. टिप्पणी के लिए बहुत आभार.