पर उपदेश कुशल बहुतेरे........
आज के हालात पर ओशो का कथन, मालूम नहीं कहाँ पढ़ा था, स्मरण हो रहा है ..."इतनी भक्ती, इतनी पूजा, इतने यात्राये, इतने घनघोर प्रवचन, इतने सम्प्रदाए और सन्यासी.......फिर इतनी अशांति, इतना अनाचार, दुराचार, भ्रस्ताचार, व्यभिचार, इतना पाप.......या तो हमरी प्रार्थनाएं सच्ची नहीं है या फिर ईस्वर का अस्तित्त्व ही नहीं है......." कितना सार्थक है... टी. वी. चैनलों. पर लगातार चल रहे प्रवचन, पञ्च सितारा महात्मा जी और पंडाल ....करोनो अनुयायी.....और देश की दशा और दिशा ??? हर भ्रस्ता चारी कही न कही तथाकथित महात्माओं का हस्त प्राप्त है.... ...