रेल की राजनीती !!
भारतीय रेल पिछले ८ सालों से राजनीती के घनचक्कर में फंसी हुई है. किराया पिछले ८ सालों में नहीं बढाया गया है. सुरक्षा की हालत दयनीय है. सुबिधाओं के नाम पर कुछ नहीं है. बजट के नाम पर प्रति वर्ष की जारही कोरी घोस्नाएं है. हम किस बिश्वस्तारिये रेल परिवहन की बात कर रहे है?? क्या रेल की हालत इस तरह के स्वार्थ प्रेरित और वोट बैंक आधारित राजनीती से सुधारी जा सकती है? मै पूंछता हूँ की आम जन लोगों में कितने प्रतिशत येसेलोग होंगे जो किराया बडाये जाने का बिरोध करेंगे....भले ही सुरक्षा के नाम पर उनके जान पर बनी रहे...??? कौन होगा जो अतिरिक्त प्रभार न देना चाहेगा भले सीट पर कोक्रोछ दौड़ते रहें?? कौन होगा जो बढे ...