किस ओर को जाते हैं ????

भारत की इकोनोमी ९ % की रफ़्तार से भाग रही है . हम दुनिया में सबसे जवान देश है. हमारी सभ्यता हमारी विरासत सबसे पुराणी है . हम विस्वा गुरु होने का ख्वाब दुबारा सच करना चाहते है . हमारा धर्म हमारे संस्कार हमें मनुष्य में विभेद नहि सिखाते.
                             किन्तु हाय ! गहरी निराशा,  गहन छोभ !  आज भी ३० % लोग मूलभूत अवस्यक्ताओं से नितांत वंचित है. कुपोषण और अशिछा जैसी बेहद शर्मनाक समस्याए आज भी हमारी चिंता का सबसे बड़ा मुद्दा है? मुझे कुछ दिनों महाराष्ट्र और गुजरात  (बताता चलूँ की यह भारत के अग्रणी राज्यों में से एक है) में भ्रमण का समय मिला है. इसी तरह मै हरयाणा के भी कुछ ग्रामीण इलाकों में भ्रमण कर चूका हूँ. पर इन globlization के सबसे बड़े भारतीय माडलों में स्थिति कोई खास उत्साह जनक नहि है. इन प्रदेशो में उपरोक्त समस्यायों के साथ साथ सांस्कृतिक छरण की नयी समस्या भी उत्पन्न हो गयी है. यह समस्या अचानक जमीन बेंचकर अमीर हुए लोगो में जादा है. अपराध और नशे की प्रवृत्तियां इन प्रदेशो में सबसे जादा बढ़ी है. महाराष्ट्र सबसे बड़ा शराबियो का अड्डा बन चूका है (शराब खपत में नंबर . एक)  आज भी सड़क किनारे नर्किये जीवन को मजबूर लोगो दर्शन होना आम बात है. एक तरफ विकास की चकाचौंध और उपभोक्ताबाद से दमकते हमारे शहर और उनके कुछ खास लोग है तो दूसरी तरफ गाँधी जी के ये तीसरे लोग जो अभी भी दुसरे नही हुए है.
                                   आज जब राष्ट्र मंडल खेलों में हजारों करोण की घपले बाजी होती है या सांसदों की वेतन वृद्धि २०० % तक की जाती है तो मन चक्कर खता है. दिमाग साथ नहि देता. समझ में बिलकुल नही आता की इस असमानता और विडम्बना का कोई अंत होगा या नहि??

पर दिल कहता है की ये भारत है यह कुछ भी हो सकता है. इसलिए सोचता हूँ उम्मीद कायम रखना ही अच्छा है.

Comments

Popular posts from this blog

International Dog Day: Who started it ? - 10 Facts about dogs to know

Things to keep in mind while buying penny stocks

Who was Sonali Phogat?