आशा और निराशा
आशा ही जीवन है, और हताशा मृत्यु । हे सर्वशक्तिमान परमात्मा के अंशो अपने को पहचानो और निराशा के भंवर से बहार आओ । तुम्हारी सीमा सिर्फ तुम्ही निर्धारित कर सकते हो ।
"उत्तिष्ठति जाग्रत प्राप्यं बरान्निबोध्त "
आशा ही जीवन है, और हताशा मृत्यु । हे सर्वशक्तिमान परमात्मा के अंशो अपने को पहचानो और निराशा के भंवर से बहार आओ । तुम्हारी सीमा सिर्फ तुम्ही निर्धारित कर सकते हो ।
"उत्तिष्ठति जाग्रत प्राप्यं बरान्निबोध्त "
Comments
Post a Comment
आपके विचारों का स्वागत है.....विल्कुल उसी रूप में कहें जो आप ने सोंचा बिना किसी लाग लपेट के. टिप्पणी के लिए बहुत आभार.