हिटलर के अनुभव भारतीय सन्दर्भों में !!

हिटलर की जीवनी "मेरा संघर्ष" पढ़ी उसके बहुत सारे अनुभव भारतीय सन्दर्भों एकदम फिट बैठते है. संसदिये लोकतंत्र के बारे में उसकी एक टिप्पणी देखें "संसदिये प्रणाली में ऊपर बैठा नेता यह जनता है दुबारा पदासीन होने का मौका मिले न मिले अतः वह कुर्सी से चिपकने के सरे तिकड़म आजमाता है, वहीं दूसरी तरफ नीचे के नेता गन उसको महा धूर्त, तिकडमी, पद लोभी आदि कहते है और किसे भी तरह उसको पद्चुत करने और अपना मार्ग प्रशस्त करने में लगे रहते है. एसे में जनहित, देशहित आदि सिर्फ शब्दालंकार बन कर रह जाते है. सही मायने में कोई जनप्रतिनिधि न होकर अपना ही हित साधने में लगे रहते है....."


                                भारतीय सन्दर्भ में कितना सच है उसका अनुभव. संसदिये लोकतंत्र के औचित्य पर एक बहस हो सकती है. और हिटलर का उपरोक्त अनुभावोप्रांत किया गया कार्य अनुचित हो सकता है. तो भी क्या हम उपरोक्त बैटन की सत्यता से इंकार कर सकते है......मीडिया से सम्बंधित एसी ही उसकी एक मजे दार टिप्पणी देखे..."प्रेस में सब दलाल भरे होते है....वे नीच व्यक्तियों को महिमा मंडित करते है और किसी भी अंजन व्यक्ति को रातों रात प्रसिधी दे देते है.....वहीं दूसरी ओर ईमानदार व्यक्तियों की एसी उपेक्षा की जायेगी या फिर मिथ्या दोषारोपण किया जायेगा की वह राजनीत से ही सन्यास लेने को मजबूर होजाये. एसे में हम राजनीत में ईमानदार और देशभक्त लोगों के आपेक्षा कैसे करसकते है......."  

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