टेक्नोलोजी
टेक्नोलोजी ने हमें कितना बदल दिया है ??? एक दिन discovary चैनेल पर भोजन पर आधारित एक कार्यक्रम देख रहा था तो सूत्रधार की एक लाइन मन में बस गयी "हम खाने को जितना बदलते जायेंगे खाना भी हमें उतना ही बदलता जायेगा" सचमुच कितना सच है. हम जीवन में जितने आराम तलब और प्रोसेस फ़ूड खाने वाले होते जा रहे है हमारी शरीरिक संरचना भी उतनी ही बदलती जा रही है.
मै सोंचता हूँ की यही बात टेक्नोलोजी के सन्दर्भ में भी कही जा सकती है. टेक्नोलोजी के अनंत आविष्कारों ने हमारी जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल कर रख दी है. एक उदहारण अगर हम फ़ोन का लेलें तो इसके अविष्कार और विकास के साथ पत्रों और डाकिया का कम समाप्य प्राय हो गया है . उंगुलियो की स्पीड पर लोगों से जुड़ जाना और बात करलेना कितना सरल और परिचित हो गया है. पर अगर हम सोंचे तो क्या वाकई में मोबाइल फ़ोन चिठियों का स्थान पर उनके भावात्मक विकल्प बन पाए है....??????
इस बात का दर्द और मतलब शायद नयी पीड़ी न समझे, पर वे लोग जरूर जानते है जिन्होंने अपनों से दूर रह कर उनको चिठ्ठी लिखी है. या फिर इस बात का महत्व उस औरत से पूंछो जिसने हर अपने प्रीतम के ख़त के इंतजार में सुबह से शाम तक डाकिये का रास्ता देखा हो..... जहाँ तक मेरा मानना है फोन कितने भी सुगम और सरल क्यों न हो जाएँ ये कभी भी चिठ्ठियों की जगह नही ले सकते. इनमे वो भाव सम्प्रेषण शक्ति, वैसी बिह्बलता और आतुरता न अ पायेगी. चिठ्ठियों में जो अपनापन था जो लगाओ था ओ इनमे कहाँ....
एक दूसरा उदहारण टी. वी. का लें. इस छोटे से बक्से ने हमारी पुरी दुनिया को समेट कर एक कमरे में बंद कर दिया है. शायद हम समझ भी नहि पाए हैं की कब इसने हमें इतना एकाकी, अपने में व्यस्त रहने वाला बना दिया है. हमारे समय का सबसे ज्यादा दुरपयोग करने वाले इस अविष्कार ने हमें अपनों में भी बेगाने जैसा अहसास दिया है . एक दृश्य लें , घर में सब अपना फेवोरित डेली सोप देख रहे है और इतने में कोई मेहमान अ जाये ??? हम उसके खातिरदारी तो जरूर करेंगे (बचे हुए संस्कार) पर बहुत ही अनमने भाव से ये सोंचते हुए की पता नही कहाँ से अ टपके, अच्चा खासा सीरिअल छूट गया.
यही नहीं टी. वी. ने बछो को इतना बदतमीज बना दिया है की वे रिमोट के लिए बड़ों से भीड़ जाते है. पापा को शयद डरते भी हों बेचारे दादी और बाबा की तो आफत ही समझो....
इन अविष्कारों ने हमारी जिन्दगी को बदल दिया है...इनके अनेको लाभ की वजह से आज जीवन कहीं जादा सुबिधा परक एवं आसन हो गया है.......
पर जरूरत इस बात की है की इन मशीनों का प्रयोग करते करते कही हमारा भी तो मशीनीकरण नहीं होता जा रहा है?????
मै सोंचता हूँ की यही बात टेक्नोलोजी के सन्दर्भ में भी कही जा सकती है. टेक्नोलोजी के अनंत आविष्कारों ने हमारी जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल कर रख दी है. एक उदहारण अगर हम फ़ोन का लेलें तो इसके अविष्कार और विकास के साथ पत्रों और डाकिया का कम समाप्य प्राय हो गया है . उंगुलियो की स्पीड पर लोगों से जुड़ जाना और बात करलेना कितना सरल और परिचित हो गया है. पर अगर हम सोंचे तो क्या वाकई में मोबाइल फ़ोन चिठियों का स्थान पर उनके भावात्मक विकल्प बन पाए है....??????
इस बात का दर्द और मतलब शायद नयी पीड़ी न समझे, पर वे लोग जरूर जानते है जिन्होंने अपनों से दूर रह कर उनको चिठ्ठी लिखी है. या फिर इस बात का महत्व उस औरत से पूंछो जिसने हर अपने प्रीतम के ख़त के इंतजार में सुबह से शाम तक डाकिये का रास्ता देखा हो..... जहाँ तक मेरा मानना है फोन कितने भी सुगम और सरल क्यों न हो जाएँ ये कभी भी चिठ्ठियों की जगह नही ले सकते. इनमे वो भाव सम्प्रेषण शक्ति, वैसी बिह्बलता और आतुरता न अ पायेगी. चिठ्ठियों में जो अपनापन था जो लगाओ था ओ इनमे कहाँ....
एक दूसरा उदहारण टी. वी. का लें. इस छोटे से बक्से ने हमारी पुरी दुनिया को समेट कर एक कमरे में बंद कर दिया है. शायद हम समझ भी नहि पाए हैं की कब इसने हमें इतना एकाकी, अपने में व्यस्त रहने वाला बना दिया है. हमारे समय का सबसे ज्यादा दुरपयोग करने वाले इस अविष्कार ने हमें अपनों में भी बेगाने जैसा अहसास दिया है . एक दृश्य लें , घर में सब अपना फेवोरित डेली सोप देख रहे है और इतने में कोई मेहमान अ जाये ??? हम उसके खातिरदारी तो जरूर करेंगे (बचे हुए संस्कार) पर बहुत ही अनमने भाव से ये सोंचते हुए की पता नही कहाँ से अ टपके, अच्चा खासा सीरिअल छूट गया.
यही नहीं टी. वी. ने बछो को इतना बदतमीज बना दिया है की वे रिमोट के लिए बड़ों से भीड़ जाते है. पापा को शयद डरते भी हों बेचारे दादी और बाबा की तो आफत ही समझो....
इन अविष्कारों ने हमारी जिन्दगी को बदल दिया है...इनके अनेको लाभ की वजह से आज जीवन कहीं जादा सुबिधा परक एवं आसन हो गया है.......
पर जरूरत इस बात की है की इन मशीनों का प्रयोग करते करते कही हमारा भी तो मशीनीकरण नहीं होता जा रहा है?????
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आपके विचारों का स्वागत है.....विल्कुल उसी रूप में कहें जो आप ने सोंचा बिना किसी लाग लपेट के. टिप्पणी के लिए बहुत आभार.