आदर्श सोसाइटी ??
आदर्श सोसाइटी के नाम पर जो अनादर्श गढ़े गए हैं उस पर आम जनता एक बार और कराही है. एसा इसलिए क्योंकि हम भारत के लोग सदियों की गुलामी के बाद अपने स्वाभिमान और उज्जवल चरित्र के लहूलुहान शरीर लेकर चल रहे है. जब भी कोई उसपर एक वार करता है या फिर भ्रष्ट चारी पिशाचों के नाखून चुभते है तो एक हलकी कराह निकलती है और फिर ख़ामोशी छा जाती है.
अपना बलिदान देकर देश की आन बान और शान रखने वाले महावीरों के नाम पर बनी आदर्श सोसाइटी में राजनेताओं तथा नौकरशाहों ने जो बन्दर बाँट की है क्या यह देश का एसा पहला मामला है ?
न तो यह पहला एसा मामला है और न ही श्री अशोक चौहान एसे पहले व्यक्ति है.
हमारा पूरा तंत्र ही इस पैशाचिक दलदल में फंस चुका है. आज हर आदमी तभी तक उज्जवल चरित्र और आदर्श बनता है जब तक की उसके पास बेईमानी का मौका न हो. अपना नंबर आते ही हर कोई रूप बदल लेता है. भ्रस्टाचार और खुले आम रिश्वतखोरी हमारे देश का बहुत ही कडवा सच है.
एसे नरपिशाच न तो गरीबों का दुःख देखते है, और न महावीरो के पवित्र लहू का सम्मान करना जानते है. अब तो एसा लगता है की गाँधी जी और लालबहादुर शास्त्री जी जैसे परीकथाओं में रहे हो.
आज उस राजनेता का उदाहरन ढूंढने से भी न मिले. हाय रे वह ऊचच कोटि का उज्जवल आदर्श ! बाप प्रधानमंत्री है तो भी बेटा दिल्ली की सरकारी बसों में आम आदमी की तरह पढने जाता है. यह भी भारत में ही हो सकता है.
हमारी असमानताएं कुछ ज्यादा ही बड़ी है. जानें इन लोगो पर लगाम कसे और कब लगे. इन स्वदेशीये नराधमो से भारत माता कैसे बचे ?? दुःख ....दुःख .....दुःख....गहरा दुःख...
अपना बलिदान देकर देश की आन बान और शान रखने वाले महावीरों के नाम पर बनी आदर्श सोसाइटी में राजनेताओं तथा नौकरशाहों ने जो बन्दर बाँट की है क्या यह देश का एसा पहला मामला है ?
न तो यह पहला एसा मामला है और न ही श्री अशोक चौहान एसे पहले व्यक्ति है.
हमारा पूरा तंत्र ही इस पैशाचिक दलदल में फंस चुका है. आज हर आदमी तभी तक उज्जवल चरित्र और आदर्श बनता है जब तक की उसके पास बेईमानी का मौका न हो. अपना नंबर आते ही हर कोई रूप बदल लेता है. भ्रस्टाचार और खुले आम रिश्वतखोरी हमारे देश का बहुत ही कडवा सच है.
एसे नरपिशाच न तो गरीबों का दुःख देखते है, और न महावीरो के पवित्र लहू का सम्मान करना जानते है. अब तो एसा लगता है की गाँधी जी और लालबहादुर शास्त्री जी जैसे परीकथाओं में रहे हो.
आज उस राजनेता का उदाहरन ढूंढने से भी न मिले. हाय रे वह ऊचच कोटि का उज्जवल आदर्श ! बाप प्रधानमंत्री है तो भी बेटा दिल्ली की सरकारी बसों में आम आदमी की तरह पढने जाता है. यह भी भारत में ही हो सकता है.
हमारी असमानताएं कुछ ज्यादा ही बड़ी है. जानें इन लोगो पर लगाम कसे और कब लगे. इन स्वदेशीये नराधमो से भारत माता कैसे बचे ?? दुःख ....दुःख .....दुःख....गहरा दुःख...
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आपके विचारों का स्वागत है.....विल्कुल उसी रूप में कहें जो आप ने सोंचा बिना किसी लाग लपेट के. टिप्पणी के लिए बहुत आभार.