रोटी या अध्यात्म ?

प्रोफ्फेस्सर अगरवाल अनशन पर है । गंगा का अविरल प्रवाह जरी रहे, उनकी मांग है। विकासवादी लोग कहते है उन्हें बिजली चाहिए ताकि बड़ी बड़ी इंडस्ट्रीज लग सके लोग भोग विलास के सामान का अधिकतम प्रयोग कर सकें। गंगा का वजूद क्या है ? उसका महत्वा क्या सोअचने का उनके पास न तो समय है न पर्याप्त सम्बदन शीलता। प्रश्न है रोटी जरूरी है या अध्यात्मिक धरोहरें ? कुछ बाँध निर्माण में रोजगार पाए लोग प्रोफ्फेस्सर साहब को गंगा में फेकने तक की धमकी देने पहुँच गए। क्या कहा जाय ? गंगा हजारों वर्षो से श्रद्धा का केन्द्र है हम उसे माता कहते है ? दूसरी और उसके अस्तित्त्वा से खिलवाड़ करने से भी नही चूकते । ये कैसी श्रद्धा है? समय है सच्चे मन से प्रोफ्फेस्सर अगरवाल का समर्थन करने करने का। नही तो वही होगा " कारवां चला गया गुबार देखते रहे"

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