वाह गुरू क्या खूब कहा ?

बढती मुद्रा स्फीत पर चिदंबरम जी के विचार हास्यास्पद लगे। बदती महगाई और मुद्रा स्फीत चिंताजनक है ।
पर इससे सरकार चिंतित है या नही, कुछ उपाय कर रही है या नही कुछ नही बताया। बस "चिंता जनक है" और इतिश्री । दुनिया के दो जाने मने अर्थ्विद भारत के दो सबसे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन है। लोग कहते है की अर्थ शास्त्र मी इनका सिक्का दुनिया मानती है, लेकिन भारत के लोग, करोड़ों गरीब लोग, करोड़ों बेरोजगार, चिंताजनक वेतन पर कम करने वाले करोड़ों मजदूर फैक्ट्री वोरकर, वाले इस देश मी महगाई और मुद्रस्फीत दोनों बेलगाम है। है रे विद्वता!! शर्म, इसलिए क्योंकि ये वो पुरोधा है जिन्होंने विकास और अर्थशास्त्र के गांधी मोडल को खारिज कर दिया था। उदारीकरण इनका मूल मंत्र था। तो इनको चिंता जनक हालत पर चिंता क्यां होगी ? उदारीकरण के खेवन हार उधोगपति और विदेशी व्यापारी मस्त है । सरकार मी आसीन मंत्री, बाबू उनके पैसों से मस्त है। महगाई और मुद्रस्फीत से जिनका सरोकार है , गाँधी के वे तीसरे आदमी विचारे मुद्रा स्फीत के मायाजाल को न समझ पते हुए सिर्फ़ सब्जियों और अन्य जरूरी चीजों के बड़ते दाम देख रहे है। बाकि राम मालिक। हालत चिंताजनक है पर चिंता करे कौन ?????

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