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Showing posts from February 27, 2011

मधुशाला - madhushala

॥हरिवंश राय बच्चन कृत मधुशाला॥ मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला पहले भोग लगा लूँ तेरा, फ़िर प्रसाद जग पाएगा सबसे पहले तेरा स्वागत, करती मेरी मधुशाला॥१॥ प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूणर् निकालूँगा हाला एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका आज निछावर कर दूँगा मैं, तुझपर जग की मधुशाला॥२॥ भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला कभी न कण- भर ख़ाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला॥३॥ मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला ' किस पथ से जाऊँ? ' असमंजस में है वह भोलाभाला अलग- अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूँ - ' राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला॥४॥ चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला! ' दूर अभी है ' , पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला हिम्मत है न बढ़ूँ आगे, साहस है न फ़िरूँ पीछे किंकतर्व्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला॥५॥ मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा,

नीड़ का निर्माण फिर फिर - Need ka nirman fir fir

यह कविता मुझे हमेशा उर्जा देती हाय : नीड़ का निर्माण फिर फिर, नेह का आह्वान फिर फिर यह उठी आंधी की नभ में छा गया सहसा अँधेरा धुलिधुसर बादलों ने धरती को इस भाँती घेरा रात सा दिन हो गया फिर रात आई और काली लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा रात के उत्पात-भय से भीत जन जन भीत कण कण किन्तु प्राची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर फिर नीड़ का निर्माण फिर फिर ..... क्रुद्ध नभ के वज्रदंतो में उषा है मुस्कुराती घोर-गर्जनमय गगन ने कंठ में खग-पंक्ति गाती एक चिडिया चोंच में तिनका लिए जो जा रही हैं वह सहज में ही पवन उनचास को नीचा दिखाती नाश के भय से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख प्रलय की निस्तब्धता में सृष्टि का नवगान फिर फिर नीड़ का निर्माण फिर फिर.... - हरिवंशराय बच्चन

बाबा राम देव - सही या गलत ??

बाबा राम देव के भ्रष्टाचार विरोध और काले धन के वापसी के आन्दोलन पर बहुत लोगों की राय है की एक सन्यासी को राजनीतिक पैंतरों से दूर रहना चाहिए. शायद दूसरी दुनिया में रहने वाले ये लोग भारतीय सन्यासी परंपरा के बारे में नितांत अपरिचित है. और शायद ये सन्यासियों को गुफा कन्दरा में रहने वाला जीव समझते है?. एसे सब लोगो से मेरा एक ही विनम्र अनुरोध है के समग्रता से स्वामी विवेकानंद को पड़े. तब उनको समझ में ए गा की सन्यास परंपरा का उदय ही इन्ही कार्यों के लिए हुआ था. एक सन्यासी जो अपने पराये के प्रपंचो दूर है. उससे अधिक लोक मंगल कौन शोंच सकलता है? और महाकवि तुलसीदास को मने तो "संत वही जो लोक मंगल के लिए व्यग्र हो' क्या स्वामी रामदेव जी की यह व्यग्रता लोक मंगल के लिए नहीं है?? क्या कला धन वापस आया तो सिर्फ उन्हें व्यक्तिगत लाभ होगा? क्या भ्रष्टाचारियों से उनकी निजी दुश्मनी है?? भगवन स्वामी राम देव को उनके मार्ग में अनंत शक्तियों से उनको आप्लावित करें. और हम सब लोगो को सदबुधि दें.  महेश.