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Showing posts from 2016

मौन शाश्त्रार्थ

कई शताब्दियों पहले इटली में पोप ने यह आदेश दिया कि सभी यहूदी कैथोलिक में परिवर्तित हो जाएं अन्यथा इटली छोड़ दें. यह सुनकर यहूदी समुदाय में बहुत रोष व्याप्त हो गया. ऐसे में पोप ने उन्हें समझौते की पेशकश करते हुए शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया. यदि यहूदी जीत जाते तो वे इटली में रह सकते थे, और यदि पोप जीत जाता तो यहूदियों को कैथोलिक बनना पड़ता या इटली छोड़ना होता. यहूदियों के सामने कोई विकल्प नहीं था. उन्होंने शास्त्रार्थ के लिए उपयुक्त व्यक्ति के नाम पर विचार ... किया लेकिन कोई इसके लिए आगे नहीं आया. विद्वान पोप के साथ शास्त्रार्थ करना आसान न था. अंततः यहूदियों ने मोइशे नामक एक ऐसे व्यक्ति को चुन लिया जो हमेशा ही दूसरों की जगह पर काम करने के लिए तैयार हो जाता था. बूढ़ा और गरीब होने के नाते उसके पास खोने के लिए कुछ न था इसलिए वह तैयार हो गया. उसने सिर्फ एक शर्त रखी कि शास्त्रार्थ केवल संकेतों के माध्यम से हो क्योंकि वह साफ-सफाई का काम करने का नाते बातें करने का आदी नहीं था. पोप इसके लिए राजी हो गया. शास्त्रार्थ के दिन पोप और मोइशे आमने-सामने बैठे. पोप ने अपना हाथ उठाकर तीन उं

बुद्ध और बुद्धत्व

बहुत सारे लोग गर्व कर रहे हैं कि उन्होने बुद्ध को गले लगा लिया. कुछ इसलिये भी खुश हैं कि उन्होने अंतत हिंदुत्व और हिंदू धर्म को लात मार दी है. प्रतिकार का आनंद... भाई मेरे ठहरो! रुको! बताओ !!! बुद्ध को कितना जाना? कितना समझा बुद्ध और बुद्धत्व को? कितना समझा कि आखिर ज्ञान क्या है? प्रज्ञा को कितना जाना? ... फिर बताओ जो बुद्ध को जान गया, उसमें कैसा गर्व? उस व्यक्ति में प्रतिकार का सुख कैसे? उसमें चिढ की भावना क्यों? आपको नहीं पता? बुद्धत्व में ना तो गर्व करने जैसा कुछ है और ना ही लात मारने जैसी कोई सीख.उसमें तो बस एक ही सीख है- ‪#‎ प्रेम‬ ... बुद्ध से किस जन्म की दुश्मनी निकाल रहे हो साधो... ____________________ ‪#‎ सब्बं_मंगलम्_जानते_हो‬ ? Sarika Tiwari ji

वामपंथी शोर

सन 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए जब नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जा रहा था तब वामपंथी शोर मचा रहे थे कि भाजपा में आडवाणी, जोशी जैसे बु ... जुर्गों को अपमानित किया जा रहा है, इन्हीं वामपंथियों ने आज जब केरल में वी एस अच्युतानंदन की मुख्यमन्त्री पद की दावेदारी को यह कहकर ख़ारिज कर दिया कि उनकी उम्र अधिक होने के कारण उन्हें मुख्यमन्त्री नहीं बनाया जा सकता। अब कोई हो हल्ला नहीं कोई चर्चा नहीं कि दक्षिणी राज्यों में वामपंथ को खड़ा करने वाले अच्युतानंदन के साथ यह अन्याय क्यों?